Top 12 Gurudwara In India

1. श्री हरिमन्दिर साहिब (Sri Harmandir Sahib) - 

हरिमंदर साहिब गुरुद्वारा, सिखों का सबसे पवित्र धार्मिक गुरुद्वारा है जिसे दरबार साहिब एवं स्वर्ण मन्दिर के नाम से भी जाना जाता है। यह भारत के पंजाब राज्य के अमृतसर शहर में स्थित है। इसका निर्माण 1585 से आरम्भ हुआ था। सम्पूर्ण अमृतसर शहर स्वर्ण मंदिर के चारों तरफ बसा हुआ है। स्वर्ण मंदिर में रोजाना अनेकों श्रद्धालु तथा पर्यटक आते हैं। अमृतसर का नाम वास्तव में उस सरोवर के नाम पर रखा गया है जिसका निर्माण श्री गुरु राम दास जी ने स्वयं अपने हाथों से किया था। यह गुरुद्वारा इसी सरोवर के बीचोबीच स्थित है। इस गुरुद्वारे का बाहरी हिस्सा सोने का बना हुआ है, इसलिए इसे 'स्वर्ण मंदिर' के नाम से भी जाना जाता है। इस स्वर्ण मंदिर को कई बार नस्ट किया गया है किन्तु हिन्दू एवं सिखों की भक्ति इसे इसका दोबारा निर्माण करवाया गया था। इस गुरूद्वारे मे आने वाले प्रत्येक श्रद्धालु के लिए खाने-पीने की व्यवस्था पूर्ण रूप से होती है। यह लंगर श्रद्धालुओं के लिए 24 घंटे खुला रहता है। खाने-पीने की व्यवस्था गुरुद्वारे में आने वाले चढ़ावे से होती है। यहाँ आने वाले लोगों की सेवा में हर तरह से योगदान देते हैं। माना जाता है कि करीब 40 हजार लोग रोज यहाँ लंगर का प्रसाद ग्रहण करते हैं। सिर्फ भोजन ही नहीं, यहां श्री गुरु रामदास सराय में गुरुद्वारे में आने वाले लोगों के लिए ठहरने की पूरी व्यवस्था भी जिसमें इस सराय मे 228 कमरे और 18 बड़े हॉल शामिल है।

2. बाबा अटल साहब गुरुद्वारा (Baba Atal Sahib Gurudwara) -

बाबा अटल साहब गुरुद्वारे का निर्माण श्री गुरु हरगोबिंद साहिब जी ने करवाया था । गुरुदेव श्री अटल जी साहिब पंजाब के अमृतसर जिले में स्थित है । यह गुरुद्वारा श्री हरिमंदिर साहिब गुरूद्वारे के पीछे की ओर स्थित है । बाबा अटल राय का जन्म 1619 में हुआ अमृतसर में श्री गुरु हरगोबिंद साहिब जी के घर में, वह छोटी उम्र से ही एक बुद्धिमान और धार्मिक लड़के थे। वे अपनी उम्र के साथियों के साथ खेलते थे और उन्हें बहुत सी ज्ञान की बातें बताया करते थे। वे मजाक में भी जो कुछ कहा करते थे उनका कोई न कोई गहरा अर्थ होता था। उनके सारे दोस्त उन्हें प्यार करते थे और उसकी बातों में सहमत होते थे। उनपर श्री गुरु हरगोबिंद साहिब जी की विशेष कृपा थी। उसने उसे अपनी गोद में ले लिया था और कहा था, ''भगवान ने बहुत शक्ति दी है।'' इसे दिखावा मत करो. यदि आप इसका उपयोग करना ही चाहते हैं तो सावधानी और समझदारी से करें।

एक दिन वे उन्हें पता चला की उनके मित्र मोहन को सांप ने काट लिया है तब वे तुरंत अपने मित्र के घर जा पंहुचे और अपने मृत मित्र को ह्रदय से लगा कर कहते है ' उठो मेरे मित्र इतनी गहरी निंद्रा में क्यों सोते हो' इतना कहते ही मोहन उठ खड़े हुऐ । इस घटना की चर्चा बहुत जल्द दूर - दूर तक फैल गई । उनके पिताजी ने उनसे कहा ऐसे तो अकाल पूरख के हुक्म में विघ्न पड़ेगा ।

इतना सुनते ही उन्होने कहा में अपने प्राण वाहेगुरु को देता हूँ कहकर चादर ओढ़ कर वहीं लेट गये और अपने प्राण त्याग दिए 1628 में मेहज़ 9 वर्ष में ही उनकी मृत्यु हो गई ।

3. तख़्त श्री पटना साहिब जी गुरुद्वारा (Takht Sri Patna Sahib) -

तख़्त श्री पटना साहिब या श्री हरमंदिर जी, पटना साहिब पटना शहर के पास पटना सिटी में स्थित सिख आस्था से जुड़ा यह एक ऐतिहासिक दर्शनीय स्थल है। यह स्थान सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह के जन्म स्थान तथा गुरु नानक देव के साथ ही गुरु तेग बहादुर सिंह की पवित्र यात्राओं से जुड़ा है। आनंदपुर जाने से पूर्व गुरु गोबिंद सिंह के प्रारंभिक वर्ष यहीं व्यतीत हुये। यह गुरुद्वारा सिखों के पाँच पवित्र तख्त में से एक है।भारत और पाकिस्तान में कई ऐतिहासिक गुरुद्वारे की तरह, इस गुरुद्वारा को महाराजा रणजीत सिंह द्वारा बनाया गया था। गुरु गोविन्द सिंह का जन्म 22 दिसम्बर 1666 शनिवार को माता गुजरी के गर्भ से हुआ था। उनका बचपन का नाम गोबिंद राय था। यहाँ महाराजा रंजीत सिंह द्वारा बनवाया गया गुरुद्वारा है जो स्थापत्य कला का सुन्दर नमूना है ।

गुरुद्वारा श्री हरिमंदर जी पटना साहिब बिहार के पटना शहर के पास पटना सिटी में स्थित है। श्री गुरु तेग बहादुर सिंह साहिब जी यहां बंगाल व असम की फ़ेरी के दौरान आए। गुरू साहिब यहां सासाराम ओर गया होते हुए आए। गुरू साहिब के साथ माता गुजरी जी ओर मामा किर्पाल दास जी भी थे। अपने परिवार को यहां छोड़ कर गुरू साहिब आगे चले गए। यह जगह श्री सलिसराय जौहरी का घर था।

4. गुरुद्वारा सीस गंज साहिब (Gurudwara Sis Ganj Sahib) -

सीस गंज गुरुद्वारा सिक्खों के नौवें गुरु श्री तेग बहादुर जी को समर्पित है। ये वर्तमान में पुरानी दिल्ली के चांदनी चौक में स्थित है, ये वह स्थान है जहां मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश पर नौवें सिख गुरु का सिर कलम कर दिया गया था, क्योंकि उन्होनें इस्लाम धर्म को अपनाने से इंकार कर दिया था। श्री गुरु तेग बहादुर जी जिन्होंने सिखों के पहले गुरु नानक जी की भावना का आगे बढाया और शीशगंज साहिब गुरुद्वारा उनकी ही शहादत की याद में बनाया गया था, 11 मार्च 1783 में सिख मिलट्री के लीडर बघेल सिंह अपनी सेना के साथ दिल्ली आए। वहां उन्होनें दिवान-ए-आम पर कब्जा कर लिया। इसके बाद मुगल बादशाह शाह अलाम द्वितीय ने सिखों के एतिहासिक स्थान पर गुरुद्वारा बनाने की बात मान ली और उन्हें गुरुद्वारा बनाने के लिए रकम दी। 8 महीने के समय के बाद 1783 में शीश गंज गुरुद्वारा बना। इसके बाद कई बार मुस्लिमों और सिखों में इस बात का झगड़ा रहा कि इस स्थान पर किसका अधिकार है। लेकिन ब्रिटिश राज ने सिखों के पक्ष में निर्णय दिया। भारत के विभाजन के बाद इसका विस्तार किया गया था। इसके निर्माण से पहले मुगल कोतवाली यहीं स्थित थी। 1857 के भारतीय विद्रोह के बाद मुगल कोतवाली को अंग्रेजों ने ध्वस्त कर दिया था और भूमि सिखों को दे दी गई क्योंकि पटियाला के महाराजा और अन्य सिख सैनिकों ने बड़ी संख्या में गोला-बारूद और सैनिक प्रदान करके मुगल सैनिकों को हराने में अंग्रेजों की मदद की थी।

5. बंगला साहिब गुरुद्वारा Bangla Sahib Gurudwara –

गुरुद्वारा बंगला साहिब प्रसिद्ध सिक्ख गुरुद्वारों में से है, जिसका निर्माण भारत के नई दिल्ली में किया गया है। यह गुरुद्वारा नई दिल्ली में कनौट प्लेस पर बाबा खरनाक सिंह मार्ग पर स्थित है यह गुरुद्वारा सिखों के 8 वे सिक्ख गुरु, गुरु हर कृष्ण की संगती और परिसर के अंदर के पूल, “सरोवर” के लिये जाना जाता है। आठवे सिक्ख गुरु, गुरु हर कृष्ण 1664 में दिल्ली में रहते समय यहाँ रुके थे। उस समय, चेचक और हैजा की बीमारी से लोग पीड़ित थे और गुरु हर कृष्ण ने बीमारी से पीड़ित लोगो की सहायता उनका इलाज कर और उन्हें शुद्ध पानी पिलाकर की थी। जल्द ही उन्हें भी बीमारियों ने घेर लिया था और अचानक 30 मार्च 1664 को उनकी मृत्यु हो गयी। इस घटना के बाद राजा जय सिंह ने एक छोटे पानी के टैंक का निर्माण शुरू करवाया था। यह गुरुद्वारा और यहाँ का सरोवर सिक्खों के लिए एक श्रद्धा का स्थल है और हर साल गुरु हर कृष्ण की जयंती पर यहाँ विशेष मण्डली का आयोजन किया जाता है। इस भूमि पर गुरूद्वारे के साथ-साथ एक रसोईघर, बड़ा तालाबं एक स्कूल और एक आर्ट गैलरी भी है। और बाकी सभी दुसरे सिक्ख गुरुद्वारों की तरह यहाँ भी लंगर है, और सभी धर्म के लोग लंगर भवन में खाना खाते है। लंगर (खाने को) गुरसिख द्वारा बनाया जाता है, जो वहाँ काम करते है और साथ ही उनके साथ कुछ स्वयंसेवक भी होते है, जो उनकी सहायता करते है।

इस परिसर में घर, हायर सेकेंडरी स्कूल, बाबा बघेल सिंह म्यूजियम, एक लाइब्रेरी और एक अस्पताल भी है। वर्तमान में गुरूद्वारे और लंगर हॉल में एयर कंडीशनर भी लगाये गये है। और नये “यात्री निवास” और मल्टी-लेवल पार्किंग जगह का निर्माण भी किया गया है। वर्तमान में टॉयलेट की सुविधा भी उपलब्ध है। गुरूद्वारे के पिछले भाग को भी ढक दिया गया है, ताकि सामने से गुरुद्वारा काफी अच्छा दिखे।

6. गुरुद्वारा मजनू का टीला (Gurudwara Majnu ka Tila) -

मार्बल गुरुद्वारा जो दिल्ली में आज स्थित है उसे 1980 में बनवाया गया था। कॉम्प्लेक्स के अंदर पहला गुरुद्वारा बघेल सिंह के द्वारा बनवाया गया था। जब वे अपने 40,000 सैनिकों के साथ मार्च 1783 में लाल किले में प्रवेश किया था और दीवान-ए-आम को कब्जा कर लिया था। मुगल शासक शाह आलम द्वितीय ने बघेल सिंह के साथ मिलकर एक समझौता किया जिसमें उन्हें शहर में सिखों के ऐतिहासिक जगहों पर गुरुद्वारा बनवाने का आदेश दिया। सिंह इसके बाद सब्जी मंडी के पास ही अपने सैनिकों के साथ कैंप लगाकर रुक गए और वहीं से सात जगहों की पहचान की जो सिख गुरुओं से जुड़ी हुई थी इसके बाद उन्होंने वहां गुरुद्वारा बनवानी शुरू कर दी। एंटरटेनमेंट टाइम्स में रीना सिंह के द्वारा लिखी गए लेख से ये जानकारी सामने आई है।

स्वयं गुरु नानक ने ये घोषणा की थी कि ये जगह मजनूं का टीला के नाम से जाना जाएगा। दुनिया के अंत होने तक लोग इस जगह को मजनूं का टीला के नाम से जानेंगे। चूंकि बड़ी संख्या में प्रेम के दीवाने मजनू इस जगह पर आशीर्वाद लेने आते थे। जिसके बाद में जब इस जगह पर गुरुद्वारा बना तो इसे नाम भी मजनू का टीला दे दिया गया।

7. गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब (Gurudwara Rakab Ganj) -

रकाब गंज साहिब नई गुरुद्वारा दिल्ली में स्थित एक ऐतिहासिक गुरुद्वारा है। यह संसद भवन के पास स्थित है। इसका निर्माण 1783 में किया गया था। जिस स्थान पर 9वें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर सिंह जी का दाह संस्कार किया गया था, उसी पर यह गुरुद्वारा निर्मित है। वर्तमान समय में दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक समिति का कामकाज इसी गुरुद्वारे से होता है। गुरुद्वारा परिसर में एक बड़ी पार्किंग व जूता घर स्थापित है। जूता घर के अंदर बड़े बड़े करोड़पति भक्तों के जूतों पर निःशुल्क पालिश करते है और गुरुद्वारे में झाडू पोछा भी लगाते है। और बाथरूम भी साफ करते है। गुरुदारे में लक्खी शाह, बनजारा हाल, व लंगर हाल स्थापित है।
गुरुदारे का मुख्य भवन जिसमें श्री गुरू ग्रंथ साहिब स्थापित है वह 6फुट ऊंची जगती पर 60×60 वर्ग फुट में बना है। दरबार हाल दो मंजिल का है। चारों प्रवेश द्वार चांदी से सजाया हुआ है। दक्षिण की तरफ श्री गुरु ग्रंथ साहिब विराजमान है। यहां सदैव शबद कीर्तन होता रहता है। गुरुदारे के द्वारों की सज्जा नित्य सुंदर फूलों से की जाती है। दरबार हाल की छत पर सुंदर चित्रकारी की गयी है। दरबार हाल के दक्षिण की तरफ 4×4 की सोने पालकी साहिब पर श्री गुरु ग्रंथ साहिब विराजमान है। मुख्य भवन के बाहर चारों कोनों पर सुंदर छतरियां बनी है। लगभग 80-90 फुट ऊंचा निशान साहिब है। चारों ओर परिक्रमा मार्ग है। गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब का शिखर लगभग 60 फुट ऊंचा है।

8. गुरुद्वारा मटन साहिब (Gurudwara Mattan Sahib) -

गुरुद्वारा श्री मटन साहिब जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले में स्थित है यह एक सिखों का परम पावन तीर्थ स्थान है । शुरुआत में यह स्थान गुरु नानक देव जी के थड़े के रूप में प्रसिद्ध था । बाद में यहां गुरुद्वारे का निर्माण करवाया गया और दूर-दूर से श्रद्धालु यहां दर्शनों के लिए आने लगे। इस स्थान पर गुरु नानक देवजी ने लोगों को प्रवचन दिया थे । मटन साहिब गुरुद्वारे के दर्शनों के लिए आनेवाले लोग न केवल भक्तिभाव से भर जाते हैं बल्कि यहां की प्राकृतिक सुंदरता भी उन्हें लुभाती है।

कश्मीर की हसीन वादियों में स्थित गुरुद्वारा मटन साहिब, प्राकृतिक रूप से समृद्ध होने के साथ ही ऐतिहासिक महत्व रखने वाला ऐसा स्थान हैं, जहां पर सिखों के पहले गुरु गुरु नानक देव जी ने एक विद्वान पंडित की आत्ममुग्धता को तोड़ा था। संसार सही राह दिखाने के लिए गुरु साहिब के द्वारा संसार भ्रमण किया गया। अपनी तीसरी यात्रा के दौरान गुरु साहिब यहां पर प्राकृतिक छटा को अद्भुत रूप देते पानी के चश्मे के पास रुके थे। वर्ष 1517 में आए गुरु साहिब ने इस स्थान पर गुरमत और सिक्खी का प्रचार किया और गुरबाणी का उच्चारण व गायन भी किया। इस स्थान को मटन के नाम से जाना जाता है। मटन से 12 किलोमीटर दूर बिजवाड़ा कस्बे में पंडित ब्रह्म दास नाम के विद्वान पंडित रहते थे। जब उन्हें पता चला कि कोई संत/फकीर मटन आकर लोगों को धर्म का उपदेश दे रहा है तो उनसे रहा न गया। पंडित ब्रह्म दास भी उसी स्थान पर अपने द्वारा पढ़ी गई संस्कृत की तमाम किताबों को लादकर पहुंच गए। बताया जाता है कि पंडित जी को यह लगता था कि उनसे बड़ा विद्वान कोई नहीं है। इसलिए लोगों को अपना ज्ञान दिखाने के लिए वह अक्सर अपने पढ़ें सभी ग्रंथ साथ लेकर घूमते थे। साथ ही उनसे संवाद करने की चुनौती देते थे। पंडित जी ने गुरु साहिब को भी धर्म चर्चा और संवाद करने की चुनौती दी। तब गुरु साहिब ने समझाया कि पंडित जी आप ज्यादा ज्ञान ग्रहण करने के बाद अपनी इन्द्रियों को काबू में नहीं रख पा रहे। जिस वजह से आपमें ज्ञान का अहंकार पैदा हो गया है।
गुरु साहिब की यह बातें पंडित ब्रह्म दास का भ्रम तोड़ देती हैं। जिस स्थान पर बैठकर गुरु साहिब ने उपदेश दिया था, बाद में इसी स्थान पर थड़ा गुरु नानक देव जी के नाम से गुरुद्वारा स्थापित होता है। लेकिन अब इस स्थान पर गुरुद्वारा साहिब के साथ मंदिर भी स्थापित है। साल 1766 में काउंसिल ऑफ अफगान रीजन के सदस्य गुरमुख सिंह के प्रभाव के कारण कश्मीर के गवर्नर नूर-ओ-दीन खान बमजी ने मटन साहिब के गुरुद्वारे की इमारत का निर्माण करवाया था।

9. हेमकुंड साहिब गुरुद्वारा (Hemkund Sahib Gurudwara)-

यह उत्तराखंड के चमोली जिले में फूलों की घाटी के पास स्थित है। इस पवित्र तीर्थस्थल का नाम गुरुद्वारे के निकट स्थित हिमानी झील हेमकुंड के नाम पर पड़ा है, जिसका शाब्दिक अर्थ 'बर्फ की झील' है। श्री हेमकुंड साहिब अर्थात सिक्खों के 10वें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी की तप स्थल, इसे सिक्ख तीर्थों का सबसे कठिन तीर्थ स्थान भी कह सकते है। करीब 15 हज़ार 200 फ़ीट ऊंचे ग्लेशियर पर स्थित श्री हेमकुंड साहिब चारों तरफ से ग्लेशियर (हिमनदों) से घिरे हैं। 
श्री हेमकुंड साहिब गुरुद्वारा 6 महीने तक बर्फ से ढका रहता है। इन्हीं हिमनदों का बर्फीला पानी जिस जलकुंड का निर्माण करता है, उसे ही हेम कुंड यानी बर्फ का कुंड कहते हैं।

 माना जाता है कि यहां श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने काफी बरसों तक महाकाल की आराधना की थी। इसी कारण से सिक्ख समुदाय की इस तीर्थ स्थान पर बहुत गहरी श्रद्धा है और वह अनेकों कठिनियों के बावजूद भी यहां पहुंचते हैं और हर साल अनेको श्रद्धालु यहाँ पहुँचते हैं।

10. गुरद्वारा रेवाल्सर साहिब (Gurdwara Rewalsar Sahib) -

रेवाल्सर साहिब सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोविंद सिंह के सम्मान में बनाया इक छोटा सा गुरुद्वारा है। गुरुद्वारा के आसपास के इलाके एक जादू पैदा करते हैं जो दुनिया भर के तीर्थ यात्रियों को आमंत्रित करता है। माना जाता कि गुरु गोविंद सिंह इस स्थान पर रुके थे, जहां वर्तमान में गुरुद्वारा स्थित है। जब गुरुजी मुगल राजा, औरंगजेब के खिलाफ लड़ रहे थे, तब उन्होंने अपनी लड़ाई के लिए समर्थन जुटाने के लिए विभिन्न पहाड़ी राज्यों के राजाओं के साथ मिलने के लिए रेवाल्सर को चुना। एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित, गुरुद्वारा अपने प्राचीन नीले रंग और विशाल गुंबदों के कारण बड़ी दूरी से आसानी से पहचानने योग्य है। पर्यटक को इस पवित्र स्थान पर जाने के लिए 108 सीढ़ियों पर चढ़ना होता है। गुरुद्वारा के बगल में एक पानी की टंकी है; यहां डुबकी लगाना एक पवित्र माना जाता है और लोगों को सभी बीमारियों से छुटकारा दिला सकता है और इसे भाग्यशाली माना जाता है। सिख गुरु की यात्रा के उपलक्ष्य में, 1930 में मंडी के राजा जोगिंदर सेन द्वारा एक गुरुद्वारा बनाया गया था।

11. गुरुद्वारा श्री पौंटा साहिब, हिमाचल प्रदेश, (Gurudwara Shri Poonta Sahib) -

गुरुद्वारा श्री पौंटा साहिब हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में स्तिथ एक प्रख्यात गुरुद्वारा है। पौंटा' शब्द का अर्थ होता है - 'पैर' इस जगह का नाम इसके अर्थ के अनुसार सर्वश्रेष्ठ महत्व रखता हैं। कहा जाता है की सिख गुरु गोबिन्द सिंह जी अश्व रोहण करके यहाँ से गुजर रहे थे और वो इसी जगह पहुँच कर रुक गए थे और इस जगह को पवित्र माना जाने लगा। इसलिए " पाओं" और "टीके" को मिलाकर "पाओंता" नाम दिया गया था।
गुरुद्वारा श्री पौंटा साहिब सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी की स्मृति में बनाया गया था। गुरुद्वारा श्री पौंटा साहिब में गुरु गोबिंद सिंह जी ने दसम ग्रंथ की रचना की थी। इसी वजह से यह गुरुद्वारा दुनिया भर में सिख धर्म के शिष्यों के बीच एक बहुत ही उच्च ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व रखता है। इस गुरुद्वारे के धार्मिक महत्व का एक उदाहरण है यहाँ पर रखी हुई "पालकी" जो कि शुद्ध सोने से बनी है और किसी एक भक्त ने ये यहाँ दानस्वरुप बनवाई थी।

कहा जाता है की यमुना नदी बहते हुए काफी शोर के साथ बहती थी, तब गुरु गोबिंद सिंह जी के अनुरोध पर नदी शांति से बहने लगी। तब से नदी शांति से इस क्षेत्र में बहती है।
इसके पास बैठकर गुरूजी ने दसम् ग्रंथ की रचना की।
दशम ग्रन्थ की रचना यहाँ होने के कारण इस जगह का वास्तव में बहुत बड़ा महत्व है।

12. गुरुद्वारा मणिकर्ण साहिब (Gurudwara Manikaran Sahib) -

गुरुद्वारा मणिकर्ण साहिब का निर्माण 15वीं शताब्दी में राजा जगत सिंह ने करवाया था। यह 1756 मीटर की ऊंचाई पर है और कुल्लू से लगभग 35 किमी दूर स्थित है। दावा किया जाता है कि 1905 से पहले भी ये गर्म पानी के झरने पूरी ताकत से फूटते थे। मणिकर्ण अपने गर्म पानी के चश्मों के लिए भी प्रसिद्ध है। देश-विदेश के लाखों प्रकृति प्रेमी पर्यटक यहाँ बार-बार आते है, विशेष रूप से ऐसे पर्यटक जो चर्म रोग या गठिया जैसे रोगों से परेशान होते है वे यहां आकर स्वास्थ्य सुख पाते हैं। खौलते पानी के चश्मे मणिकर्ण का सबसे अचरज भरा और विशिष्ट आकर्षण हैं। गुरु नानक देव की यहां की यात्रा की स्मृति में बना था। जनम सखी और ज्ञानी ज्ञान सिंह द्वारा लिखी तवारीख गुरु खालसा में इस बात का उल्लेख है कि गुरु नानक ने भाई मरदाना और पंच प्यारों के साथ यहां की यात्रा की थी। इसीलिए पंजाब से बडी़ संख्या में लोग यहां आते हैं।

माना जाता है कि भगवान शिव और देवी पार्वती लगभग 1100 वर्षों तक यहाँ पर रहे थे और सिखों के अनुसार, गुरु नानक जी ने यहां कई चमत्कार किए थे। मणिकरण साहिब कुल्लू का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। इस गुरुद्वारा का जियान गियान सिख द्वारा ‘बारहवें गुरु खालसा’ में भी उल्लेख किया गया है। 

इसका मुख्य कारण पार्वती घाटी क्षेत्र में गहरी दरारें या दरारों की उपस्थिति है। इस क्षेत्र में मौजूद गहरी दरारों के कारण पार्वती नदी का पानी गहराई तक रिसता है और धरती के भीतर गर्म चट्टानों के संपर्क में आता है।

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